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चुनाव मैच रेफ़री की किसने सुनी!

जनता के सामने एकदम ‘सजग व सक्रिय’ दिखने का ढोंग करने वाला चुनाव आयोग प्रतिबन्धित क्षेत्रों में चुनाव सामग्री बँटवाने, मतदाताओं को पैसा व शराब बँटवाने, समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ बयान देने, धार्मिक उन्माद फैलाने व आदर्श चुनाव आचार संहिता का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करने आदि को रोक तो नहीं पाया (वैसे रोकने की इनकी कोई चाहत भी नहीं थी), हाँ, लेकिन हाथ में आदर्श चुनाव आचार संहिता का दिखावटी चाबुक लिये आयोग तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के नेताओं को आचार संहिता के उल्लंघन पर नोटिस देता ज़रूर नज़र आया। जैसाकि इस बार अमित शाह, वसुन्धरा राजे व आजम खाँ के भड़काऊ भाषणों पर नोटिस हो या ममता बनर्जी का आयोग की बात न मानने पर नोटिस हो आदि। ये नोटिस चुनाव आयोग के दफ़्तर से अपना सफ़र शुरु करते हैं और इन नेताओं के कचरे के डिब्बे में ख़त्म! यही इनकी मंज़िल होती ही है। अगर एक-दो कार्रवाई की भी जाती है तो वह भी ज़रूरी है वरना जनता के सामने इन चुनावों को “स्‍वतन्त्र व निष्पक्ष” कैसे घोषित किया जायेगा।

आई.पी.एल.: बाज़ारू खेल बिकते खिलाड़ी!

प्रायोजक दो तरह से आकर्षित होते हैं। एक, टीम के अन्दर नामी खिलाड़ियों के होने से दूसरा, टीम के प्रदर्शन से। टीम का अच्छा प्रदर्शन करना निश्चित नहीं होता तब टीम में नामी खिलाड़ियों के होने की आवश्यकता और बढ़ जाती है जिसके लिए फ्रेंचाइज़ी नामी खिलाड़ियों की ज़्यादा से ज़्यादा बोली लगाती है और वही लागत कम करने के लिए टीम के बाकी सदस्यों को कम-से-कम में ख़रीदना चाहती है। हर खिलाड़ी ज़्यादा से ज़्यादा कीमत पर बिकने को हर वक़्त तैयार रहता है। ऐसे में आईपीएल या ऐसे आयोजनों से जुड़े खिलाड़ी, बोर्ड, फ्रेंचाइजी व अन्य घटक अपने-अपने स्तर पर अपने मुनाफ़े तथा अधिकाधिक धन बटोरने की अनियन्त्रित भूख के चलते तथाकथित नियमों व कानूनों के बाहर जाकर इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं। यहाँ प्रश्न व्यक्तिगत नैतिकता एवं शुचिता का नहीं वरन् उस समाज के मूलभूत नियम का है जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को वैसे ही अनुशासित करता है। और अपनी गतिकी से एक ऐसी सभ्यता एवं जीवन रूप को रचता है जो व्यक्तिवाद व धनतन्त्र के दृष्टिहीन और दिशाहीन रास्ते पर बढ़ती है। इस घटना में शामिल खिलाड़ी, सटोरिये, अम्पायर, प्रबन्धक आदि पूँजीवाद के आम नियम-श्रम की लूट तथा धन एवं पूँजी को बढ़ाते जाने के अन्धे उन्माद से पैदा होने वाले उपोत्पाद हैं। यह भ्रष्टाचार पूँजी के किसी भी क्षेत्र की स्वाभाविक नियति का नमूना है चाहे यह खेल का क्षेत्र ही क्यों न हो।