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एक जुझारू जनवादी पत्रकार – गणेशशंकर विद्यार्थी

भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौर में जिन्होंने त्याग बलिदान और जुझारूपन के नये प्रतिमान स्थापित किये, उनमें गणेशशंकर विद्यार्थी भी शामिल हैं। अपनी जनपक्षधर निर्भय पत्रकारिता के दम पर विद्यार्थी जी ने विदेशी हुकूमत तथा उनके देशी टुकड़खोरों को बार-बार जनता के सामने नंगा किया था। वे आजीवन राष्ट्रीय जागरण के प्रति संकल्पबद्ध रहे। विद्यार्थी जी ने तथाकथित वस्तुपरकता का नाम लेते हुए कभी भी वैचारिक तटस्थता की दुहाई नहीं दी। हिन्दी प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय जागरण का वैचारिक आधार तैयार करने में तथा उसे और व्यापक बनाने में उन्होंने अहम भूमिका अदा की थी। उस दौर में विद्यार्थी जी के द्वारा सम्पादित पत्र ‘प्रताप’ ने साम्राज्यवाद-विरोधी राष्ट्रीय पत्रकारिता की भूमिका तो निभायी ही साथ-साथ जुझारू पत्रकारों तथा क्रान्तिकारियों की एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित-प्रशिक्षित करने का काम भी किया था।

राहुल सांकृत्यायन / गणेशशंकर विद्यार्थी

हमारे सामने जो मार्ग है, उसका कितना ही भाग बीत चुका है, कुछ हमारे सामने है और अधिक आगे आने वाला है। बीते हुए से हम सहायता लेते हैं, आत्मविश्वास प्राप्त करते हैं, लेकिन बीते की ओर लौटना –यह प्रगति नहीं, प्रतिगति – पीछे लौटना – होगी। हम लौट तो सकते नहीं, क्योंकि अतीत को वर्तमान बनाना प्रकृति ने हमारे हाथ में नहीं दे रखा है। फिर जो कुछ आज इस क्षण हमारे सामने कर्मपथ है, यदि केवल उस पर ही डटे रहना हम चाहते हैं तो यह प्रतिगति नहीं है, यह ठीक है, किन्तु यह प्रगति भी नहीं हो सकती यह होगी सहगति – लग्गू–भग्गू होकर चलना – जो कि जीवन का चिह्न नहीं है। लहरों के थपेड़ों के साथ बहने वाला सूखा काष्ठ जीवन वाला नहीं कहा जा सकता। मनुष्य होने से, चेतनावान समाज होने से, हमारा कर्तव्य है कि हम सूखे काष्ठ की तरह बहने का ख्याल छोड़ दें और अपने अतीत और वर्तमान को देखते हुए भविष्य के रास्ते को साफ करें जिससे हमारी आगे आने वाली सन्तानों का रास्ता ज्यादा सुगम रहे और हम उनके शाप नहीं, आशीर्वाद के भागी हों।