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स्वयंसेविता, नोबल पुरस्कार की राजनीति और पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर एक विरोध-पक्ष संगठित करने की मुहिम

नवउदारवादी नीतियों के अमल ने आज पिछड़े ग़रीब देशों में जो अभाव, दरिद्रता और दुखदर्द पैदा किया है उसने साम्राज्यवाद को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करने की ज़मीन दी। उसने अनुदान की मदद से स्वयंसेवी संस्थाओं का जाल फैलाया और उसके ज़रिये सुधारों के माध्यम से व्यवस्था के सताये हुए लोगों में स्वीकृति निर्मित करने का काम किया। साम्राज्यवादियों के इस ख़तरनाक कुचक्र को समझे बग़ैर हम बचपन बचाओ जैसी ग़ैर-सरकारी संस्थाओं की भूमिका को नहीं समझ सकते। यानी जनता के प्रति सरकार की ज़िम्मेदारी से लोगों का ध्यान हटाना और जनान्दोलनों के बरक्स एक प्रतिसन्तुलकारी शक्ति का निर्माण करना। ज़ाहिर है, पूँजीवाद की सुरक्षापंक्ति के रूप में संसदीय वामपन्थियों के कमजोर पड़ने के चलते यह भूमिका अब इन स्वयंसेवी संस्थाओं ने अत्यन्त प्रभावी ढंग से अख़्ति‍यार कर ली है।

बिल गेट्स और वॉरेन बुफे की चैरिटी: जनता की सेवा या पूँजीवाद की सेवा?

वॉरेन बुफे की सम्पत्ति का 99 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति से नहीं आता है। यह आता है वॉल मार्ट और गोल्डमान साक्स जैसे वित्तीय दैत्य कारपोरेशनों में शेयर से। वॉल मार्ट अमेरिका में सबसे कम मज़दूरी देने के लिए जाना जाता है और इसकी दुकानों में अमेरिकी मज़दूर लगभग न्यूनतम मज़दूरी पर काम करते हैं। वॉल मार्ट अपनी कई कपड़ा फैक्टरियों को चीन ले जा चुका है या ले जा रहा है जहाँ वह चीनी मज़दूरों से 147 डॉलर प्रति माह पर काम करवा रहा है। गोल्डमान साक्स वही वित्तीय संस्था है जिसके प्रमुख ने अभी कुछ महीने पहले स्वीकार किया था कि उसकी संस्था ने लापरवाही से सबप्राइम ऋण दिये जिनके कारण विश्व वित्तीय व्यवस्था चरमराई, संकट आया और दुनिया भर के मज़दूर और नौजवानों का एक बड़ा हिस्सा आज सड़कों पर बेरोज़गार है या गुलामी जैसी स्थितियों में काम कर रहा है। इन कम्पनियों का मुनाफा खरबों डॉलरों में है, जिसके लाभांश प्राप्तकर्ताओं में वॉरेन बुफे का स्थान शीर्ष पर है। ये तो सिर्फ दो उदाहरण हैं। ऐसे बीसियों साम्राज्यवादी कारपोरेशनों की विश्वव्यापी लूट का एक विचारणीय हिस्सा वॉरेन बुफे के पास जाता है। उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति उनके इस मुनाफे के सामने बेहद मामूली है।

पूँजीवादी व्यवस्था के चौहद्दियों के भीतर ग़रीबी नहीं हटने वाली

मुनाफे की होड़ पर टिकी ये व्यवस्था बिल्ली के समान है, जो चूहे मारती रहती है और बीच-बीच में हज करने चली जाती है। व्यापक मेहनतकश आवाम की हड्डियाँ निचोड़ने वाले मुनाफाखोर बीच-बीच में एन.जी.ओ. (गैर-सरकारी संगठन) व स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से जनता की सेवा करने उनके दुख-दर्द दूर करने का दावा करते हैं।

शिक्षा में सुधार बनाम एनजीओकरण

पाठ निर्माण और अन्यान्य क्षेत्र में एन.सी.ई.आर.टी. की भावी भूमिका किस तरह महत्वपूर्ण होने जा रही है, यह जान लेना भी जरूरी है। आज़ादी के 58 साल के अनुभव के बाद साफ़ है कि सरकारों की समानता पर आधारित शिक्षा की लाख घोषणाओं के बावजूद प्राइवेट स्कूलों और निजी प्रकाशकों की महँगी व तोड़ी-मरोड़ी गई पाठ सामग्रियों के कारण शिक्षा क्षेत्र में भयावह विषमता और अराजकता बढ़ी है। मूल्य निर्माण का नतीजा तो सामने है। ऐसे में निदेशक का यह कहना कि एन.सी.ई.आर.टी. का काम किताब निर्माण का व्यवसाय नहीं है, शिक्षा में आगामी सुधारों का संकेत दे देता है।

अमेरिकी फाउण्डेशन:मुखौटों के पीछे का सच

सत्ता वर्ग मात्र बन्दूक और कानून द्वारा ही शासन नहीं करता। उल्टे उन्हें तो इस बात की आवश्यकता होती है कि शासन करने के लिए उन्हें निरंतर बलप्रयोग की शरण न लेनी पड़े। इसलिए वह दलील देती हैं कि, वे कई किस्म के संस्थाओं, गतिविधियों और व्यक्तियों (जो अक्सर स्वयं शासक वर्ग के सदस्य नहीं होते) के जरिए शासित जनता की सहमति का निर्माण करते हैं, वे शासक वर्ग की विचारधारा का प्रसार इस तरह करते हैं जैसे कि यह एक सामान्य बोध की बात हो। एक ओर सत्ता वर्ग के विचारों से असंतोष को ‘‘अतिवाद’’ करार दिया जाता है और उसकी उपेक्षा की जाती है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति के असंतोष का स्वागत किया जाता है और उसे रूपान्तरित कर दिया जाता है। वास्तव में, अगर सत्ता वर्ग का प्रभुत्व रूढ़ और संकीर्ण न हो तो वह ज्यादा टिकाऊ होता है, बल्कि वह उभरते रुझानों को जल्द से जल्द अपने में समाहित कर लेने में सक्षम होता है।