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ग़रीबी के बढ़ते समुद्र में अमीरी के द्वीप

भारत में बढ़ती ग़रीबी की सच्चाई बताने के लिए शायद ही आँकड़ों और रिपोर्टों की ज़रूरत पड़े। देश के नगरों-महानगरों में करोडों की तादाद में गाँव-देहात से उजड़कर आयी ग़रीब आबादी को राह चलते देखा जा सकता है। लेकिन फिर भी शासक वर्ग सूचना तन्त्र के माध्यम से ‘विकास’ के आँकड़े (जैसे – जीडीपी, सेंसेक्स की उछाल) दिखाकर आबादी में भ्रमजाल फैलाने की कोशिश करता है। ज़ाहिरा तौर पर झूठ के इस भ्रमजाल से आम आबादी भी प्रभावित होती है और एक मिथ्याभासी विकास के सपने देखती है। जबकि हकीकतन मुट्ठीभर लोगों के विकास की कीमत इस आम-आबादी को चुकानी पड़ती है।

पप्पू वोट देकर क्या करेगा!

अगर विज्ञापन से प्रभावित होकर पप्पू वोट देने के लिए भी तैयार होता है तो किसे वोट देता है? हालत यह है कि चुनावी नेताओं और अपराधियों के बीच कोई ख़ास फ़र्क नहीं रह गया है। एक गैर-सरकारी संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक जिन पाँच राज्यों में अभी चुनाव होने हैं। उनमें निर्वाचित हर पाँच में से एक विधायक की आपराधिक पृष्ठभूमि है। रिपोर्ट के अनुसार कुल नवनिर्वाचित 549 जनप्रतिनिधियों में से 124 का आपराधिक रिकार्ड है। अगर दिल्ली विधानसभा की बात की जाये तो कुल 70 सीटों वाली विधानसभा में 39 फ़ीसदी विधायक दागी हैं। यानी राजधानी दिल्ली में 91 उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि है।

यासूकुनी, शिंज़ो एबे और जापान की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएँ

पिछले कुछ समय में जापान के भीतर अंधराष्ट्रवाद काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है। इसमें वहाँ की दक्षिणपंथी ताक़तों को काफ़ी योगदान रहा है जो लम्बे समय से जापानी स्वाभिमान की बात करती रही हैं और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान के अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपमानित होने को याद दिलाते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि जापान ने कोई युद्ध अपराध नहीं किया बल्कि वह तो अपने एशियाई पड़ोसियों को पश्चिमी गुलामी से मुक्त करा रहा था। यासूकूनी में एक स्वतंत्र संगठन द्वारा ऐसी प्रदर्शनियों का आयोजन भी किया जाता है जिसमें ऐसे दृष्टिकोण से ही तथ्यों को प्रस्तुत किया जाता है। यासूकूनी धार्मिक से ज़्यादा जापान के उभरते राष्ट्रवाद का प्रतीक चिन्ह बन गया है।