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विकास के रथ के नीचे भूख से दम तोड़ते बच्चे

मध्यप्रदेश के मुखमन्त्री शिवराज सिंह चौहान सवेरे नहा–धोकर माथे पर तिलक लगाकर, चमकता सूट डालकर जब साइकिल पर सवार होकर विधानसभा की ओर कूच करते है तो मीडिया की आँखे फटी की फटी रह जाती है कि ये क्या हो गया है ? दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतन्त्र’ के एक प्रदेश का मुख्यमन्त्री साइकिल पर ? गजब की बात भाई! मोटरसाइकिल से, कार से चलने वाले मध्यवर्ग का एक हिस्सा हर्षातिरेक से मुख्यमन्त्री जी के जीवन की सादगी पर लोट–पोट हो जा रहा है। पत्र–पत्रिकाओं के कवर पेज पर और अखबारों आदि में मध्यप्रदेश की सरकार द्वारा छपवाये जा रहे विज्ञापनों से पता चलता है कि मुख्यमन्त्री शिवराज चौहान के नेतृत्व में स्व. प. दीनदयाल अत्ंयोदय उपचार योजना, दीनदयाल रोज़गार योजना, दीनदयाल चलित उपचार योजना, दीनदयाल अंत्योदय मिशन जैसी परियोजनाएँ चल रही है, जिनके केन्द्र में ‘सबसे कमज़ोर’ आदमी है। इन विज्ञापनों में विशेष रूप से यह बात दर्ज़ रहती है कि मध्यप्रदेश की सरकार प. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवतावाद के सिद्धान्त पर चल रही है। इस तरह विज्ञापनों द्वारा बजाये जा रहे ढोल–नगाड़ों के साथ सरकार के मजूबत हाथ ‘कमज़ोर आदमी’ तक पहुँच चुके हैं। लेकिन ज्योंही कुछ सरकारी आँकड़ों की ही थाप पड़ी इस ढोल की पोल खुलने में देर नहीं लगी। तो आइये आँकड़ो और तथ्यों की रोशनी में हम इस ‘एकात्म मानवतावाद’ के फोकस बिन्दु की और उसके नाभिक की सच्चाई को पहचानें।

पाठक मंच

इस अंक में संकलित आलेख, सूचनाएँ और कविताएँ क्रान्ति की अदभुत चिंगारी लिये हुए हैं। यह मानवता के हित एक नये मानव के निर्माण के साथ-साथ प्रतिरोधी दानवीय शक्तियों का खात्मा भी करेगी। यह देश के युवाओं को एक नई जीवन दृष्टि, एक सही इतिहासबोध  और मानवीय समझ देगी। हमारी संकल्प दृढ़ता और विस्तृत कर्त्तव्य-बोध ही हमारी सफ़लता का कारक होगा, हमारी यह आकांक्षा है।

टाटा की काली करतूतें और उसकी नैनो

क्या टाटा को या नैनो के स्पेयर पार्ट्स बनाने वाली सहयोगी कम्पनियों को, मैन्युफ़ैक्चरिंग के लिये कच्चा माल उनके द्वारा बनायी जा रही अन्य गाड़ियों की अपेक्षा सस्ता मिला होगा? नहीं ऐसा तो हो नहीं सकता क्योंकि कच्चे माल के उत्पादन पर टाटा जैसे लोगों का ही कब्जा है और वे अपने मुनाफ़े में कमी करने से रहे। क्या टाटा ने नैनो परियोजना में लगे प्रबन्धन अधिकारियों और इन्जीनियरों को कम वेतन दिया होगा? ऐसा तो कदापि हो ही नहीं सकता। उनको तो और अधिक ही दिया गया होगा। तो फ़िर टाटा गाड़ी की लागत कहाँ से पूरा करेगा? यह एक अहम सवाल है। और इसका जवाब एकदम साफ़ है। वह लागत पूरी करेगा और मुनाफ़ा भी कमायेगा; मज़दूरों, मेहनतकशों के खून को निचोड़कर। उसके लिये कम से कम कीमत पर खेती की जमीन खरीदेगा और किसानों पर विरोध करने पर गोलियाँ बरसायेगा। निर्माण कार्य में लगे मज़दूरों से कम से कम कीमत पर ज्यादा से ज्यादा घण्टे काम करवायेगा तब कहीं जाकर उसकी गाड़ी तैयार होगी। टाटा ये सब करेगा तभी जाकर इतनी कम कीमत पर वह गाड़ी बना पायेगा, वरना इसके अलावा कोई रास्ता नहीं।