Tag Archives: परजीवी “जनतंत्र”

पूँजीवादी जनवाद के खाने के दाँत

पूँजीवादी व्यवस्था में संसद, विधानसभाएँ आदि तो केवल दिखाने के दाँत होते हैं जो जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए खड़े किए जाते हैं। “लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था”, “लोकतंत्र के मजबूत खंभे” जैसी लुभावनी बातों से जनता की नज़रों से सच्चाई को ओझल करने की कोशिश की जाती है। पूँजीवादी जनवाद की असलियत यह है कि वह 15 प्रतिशत मुनाफ़ाखोरों का जनवाद होता है और 85 प्रतिशत आम जनता के लिए तानाशाही होता है। इसी तानाशाही को पुलिस, कानून, कोर्ट-कचहरी, जेल आदि मूर्त रूप प्रदान करते हैं जो पूँजीवादी व्यवस्था के खाने के दाँत की भूमिका अदा करते हैं।

दुनिया के सबसे बड़े और महँगे पूँजीवादी जनतन्त्र की तस्वीर!

गाँधी द्वारा उठाये गये इस सवाल की कसौटी पर जब हम आज के भारत की संसदीय शासन प्रणाली को कसते हैं तो पाते हैं कि ये औपनिवेशिक शासन से भी कई गुनी अधिक महँगी है। यह बात दीगर है कि जिस शासन-व्यवस्था के गाँधी पैरोकार थे, आज की सड़ी-गली व्यवस्था उसी की तार्किक परिणति है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनहित याचिका के फैसले के बाद भी हमें समझने की ज़रूरत है कि पूँजीवादी संसदीय जनवाद अपनी इस ख़र्चीली धोखाधड़ी और लूटतन्त्र की प्रणाली में बदलाव नहीं लाने वाला है। असल में भारतीय राज्य व्यापक मेहनतकश जनता का राज्य नहीं बल्कि मुट्ठी भर पूँजीपतियों की तानाशाही वाला राज्य है। इसे स्पष्ट करने के लिए आँकड़ों का अम्बार लगाने की ज़रूरत नहीं है कि मौजूदा पूँजीवादी जनतन्त्र में जन तो कहीं नहीं है, बस एक बेहद ख़र्चीला तन्त्र और ढेर सारे तन्त्र-मन्त्र हैं! आम जनता के हिस्से में इसका ख़र्च उठाने के अलावा ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, अशिक्षा और कुपोषण ही आते हैं।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार का “समाजवाद”

आज साँपनाथ की जगह नागनाथ को चुनने या कम बुरे-ज़्यादा बुरे के बीच चुनाव करने का कर्तव्य, जनता का बुनियादी कर्तव्य बताया जा रहा है। 2014 को लोकसभा के चुनाव में हमसे फिर इन्हीं में से किसी को चुनने की अपील की जायेगी। पाँच साल तक मायावती की निरंकुशता, तानाशाही, गुलामी झेली अब पाँच साल के लिए सपा की झेलनी है। ऐसे में सभी सचेत व इंसाफपसन्द लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालें। रास्ता ज़रूर निकलेगा, परन्तु एक बात साफ है इस वर्तमान चुनावी नौटंकी से कोई रास्ता नहीं निकलने वाला।

विकास पुरुष नीतीश कुमार का ऐतिहासिक जनादेश और सुशासन का सच!

नीतीश कुमार की सरकार की जनपक्षधरता अभी हाल के ही एक और मसले में भी सामने आ गयी। अभी चैनपुर-बिशुनपुर इलाक़े में एक पूँजीपति एस्बेस्टस का कारख़ाना लगाने वाला है। इस इलाक़े की पूरी जनता इसके ख़िलाफ है और सड़कों पर उतर रही है। लेकिन नीतीश कुमार की सरकार इन पर लाठियाँ बरसाने और इन्हें गिरफ़्तार करने का काम कर रही है। इसी से पता चलता है कि नीतीश कुमार की सरकार किनके लिए विकास करना चाहती है। यह विकास पूँजीपतियों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है और इसकी सच्चाई आने वाले पाँच वर्षों में और अच्छी तरह से उजागर हो जायेगी।

राष्ट्र खाद्य सुरक्षा कानून मसौदा: एक भद्दा मज़ाक

अगर सच्चाइयों पर करीबी से निगाह डालें तो साफ हो जाता है कि वास्तव में खाद्यान्न सुरक्षा मुहैया कराना सरकार का मकसद है ही नहीं। जिस प्रकार नरेगा के ढोंग ने यू.पी.ए. सरकार को एक कार्यकाल का तोहफ़ा दे दिया था, उसी प्रकार यू.पी.ए. की सरकार खाद्यान्न सुरक्षा कानून के नये ढोंग से एक और कार्यकाल जीतना चाहती है। इससे जनता को कुछ भी नहीं मिलने वाला; उल्टे उसके पास जो है वह भी छीन लिया जायेगा।

देख फ़कीरे, लोकतन्‍त्र का फ़ूहड़ नंगा नाच!

आज पूरी पूँजीवादी राजनीति सर से पाँव तक नंगी हो चुकी है। ऐसे में यदि संसद में कोई कार्रवाई हो भी जाती तो इससे जनता का क्या भला हो जाता? जब कार्रवाई चलती है तो भी तो उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ बनती हैं, जनता के ख़िलाफ साज़िशें होती हैं, काले कानून पास होते हैं, और लूट-खसोट को चाक-चौबन्द करने के नियम-कानून बनते हैं। जब संसद में ही लुटेरे बैठेंगे तो आप और क्या उम्मीद कर सकते हैं? इसलिए, संसद में कोई कार्रवाई हो या न हो, इससे जनता को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। पूँजीवादी संसद की परजीवी संस्था अपने आप में इस देश की जनता पर बोझ है।

राष्ट्रमण्डल खेल – ”उभरती शक्ति“ के प्रदर्शन का सच

पूँजी की लूट और गति, जिसने उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों एवं स्थान की तलाश में पूरे विश्व में निर्बाध रूप से तूफान मचा रखा है, से खेल भी अछूता नहीं है। खेल आयोजन एवं समूचा खेल तन्त्र आज एक विशाल पूँजीवादी उद्योग बन गया है जहाँ सब कुछ मुनाफे को केन्द्र में रखकर विभिन्न राष्ट्रपारीय निगमों, कम्पनियों एवं इनके सर्वोच्च निकाय पूँजीवादी राज्यव्यवस्था द्वारा संचालित किया जाता है।

पूँजीपतियों के लिए सुशासन जनता के लिए भ्रष्ट प्रशासन

तमाम चुनावी मदारी जनता को बरगलाने के लिए नये-नये नुस्ख़े ईजाद करते रहते हैं। बिहार में भाजपा व जद (यू) के गठबन्धन वाली सरकार के मुख्यमन्त्री नितीश कुमार इस खेल के काफी मँझे हुए खिलाड़ी हैं। अपने इस कार्यकाल की शुरुआत में उन्होंने ‘‘जनता को रिपोर्ट कार्ड’‘ देने की परम्परा शुरू की थी, जिसे अब केन्द्र सरकार भी निभा रही है। रिपोर्ट कार्ड नामक मायावी जाल इसलिए बुना जाता है, ताकि इसके लच्छेदार शब्दों व भ्रामक आँकड़ों को सुनने के बाद जनता अपनी वास्तविक समस्याओं को भूलकर विकास के झूठे नारे पर अन्धी होकर नाचती रहे।

चुनावी पार्टियों के अरबों की नौटंकी भी नहीं रोक सकी महँगाई डायन के कहर को!

महँगाई के विरोध में भाजपा द्वारा आयोजित रैली के एक दिन पहले मैं अपने कुछ मित्रों के साथ नयी दिल्ली स्टेशन जा रहा था। पूरा शहर मानो भगवा रंग में डुबो दिया गया था। सड़कों, गलियों, दीवारों को बड़े-बड़े होर्डिंग, पोस्टर, वाल राइटिंग, झण्डे और चमचमाते चमकियों से पाट दिया गया था। अख़बारों के पन्ने का भी रंग रैली के विज्ञापनों से सराबोर था। स्टेशन का दृश्य भी कुछ वैसा ही था। जगह-जगह स्वागत डेस्क और सहायता डेस्क लगे हुए थे जहाँ पर कार्यकर्ता चमकते-दमकते कपड़ों में जूस और स्वादिष्ट व्यंजनों का रसास्वदन कर रहे थे। उन्हें देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि महँगाई का ज़रा भी असर उनकी सेहत पर नहीं था, उल्टे कुछ की तो कुम्भकरणा स्वरूपम काया थी जिसे देखकर तो मँहगाई डायन भी मूर्छित हो जाती! प्लेटफार्म पर खड़े कुछ लोग बता रहे थे कि कई जगहों से पूरी ट्रेन रिज़र्व होकर रैली के लिए आ रही है। वहीं मज़दूरों की छोटी-बड़ी टोलियाँ भी स्वागत डेस्क के करीब से गुज़र रही थी। यह वह आबादी थी जिस पर मँहगाई डायन ने अपना कहर बरपाया है, जिसे यह भव्य आयोजन खाये-पिये व्यक्ति के द्वारा आयोजित एक भव्य नौटंकी से ज़्यादा कुछ नहीं दिखायी पड़ता होगा।

15 अगस्त के मौक़े पर कुछ असुविधाजनक सवाल!

क्या प्रधानमन्त्री जी को पता है कि जब वे लालकिला की प्राचीर से भारतीय जन-गण को सम्बोधित कर रहे थे, उसके ठीक 24 घण्टा पहले अलीगढ़ में पुलिस इस देश की ‘जन’ पर गोलियाँ बरसा कर कइयों को लहूलुहान कर चुकी थी और तीन को मौत के घाट उतार चुकी थी। मारे गये किसानों की महज़ इतनी भर माँग थी कि ‘यमुना एक्सप्रेस वे’ के नाम जे.पी. समूह के लिए उनसे जो ज़मीन सरकार ने हथिया लिया है उसका उचित मुआवज़ा दिया जाये। बस इतनी सी बात।