विज्ञान को इस व्यवस्था के भीतर आमतौर पर पूँजी की चाकरी और अत्यधिक मुनाफा लूटने की गाड़ी में बैल की तरह नाँध दिया गया है। निश्चित रूप से दार्शनिक रूप से विज्ञान के हर उन्नत प्रयोग ने भौतिकवाद को पुष्ट किया है और तर्क और रीज़न के महाद्वीपों को विस्तारित किया है। इस प्रयोग ने भी अध्यात्मवाद, भाववाद और अज्ञेयवाद की कब्र पर थोड़ी और मिट्टी डालने का काम किया है। इस रूप में ऐतिहासिक और दार्शनिक तौर पर इस प्रयोग की एक प्रगतिशील भूमिका है। लेकिन हर ऐसे प्रयोग का पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर आमतौर पर मुनाफे और मुनाफे को सुरक्षित रखने वाले दमन-तन्त्र को उन्नत बनाने के लिए ही उपयोग किया जाता है। इसलिए आज हर युवा वैज्ञानिक के सामने, जो विज्ञान की सही मायने में सेवा करना चाहता है, जो मानवता की सही मायने में सेवा करना चाहता है, मुख्य उद्देश्य इस पूरी मानवद्रोही अन्यायपूर्ण विश्व पूँजीवादी व्यवस्था का विकल्प पेश करना और उसके लिए संघर्ष करना होना चाहिए। एक अनैतिक व्यवस्था के भीतर नैतिक-अनैतिक की बहस ही अप्रासंगिक है।