Category Archives: महान व्‍यक्तित्‍व

कैथी कॉलवित्ज़ –एक उत्कृष्ट सर्वहारा कलाकार

कॉलवित्ज़, जो एक महान जर्मनप्रिंटमेकर व मूर्तिकार थीं, अपने समय के कलाकारों से अलग एक स्वतन्त्र और रैडिकल कलाकार के रूप में उभर कर आती है। उन्होंने शुरू से ही कलाकार होने के नाते समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझा और अपनी पक्षधरता तय की। उनके चित्रों में हम शुरुआत से ही गरीब व शोषित लोगों को पाते हैं, एक ऐसे समाज का चेहरा देखते हैं जहाँ भूख है, गरीबी है, बदहाली है और संघर्ष है! उनकी कला ने जनता के अनन्त दुखों को आवाज़ देने का काम किया है। उनकी कलाकृतियों में ज़्यादातर मज़दूर तबके से आने वाले लोगों का चित्रण मिलता है। वह “सौंदर्यपसंद” कलाकारों से बिलकुल भिन्न थीं। प्रचलित सौंदर्यशास्त्र से अलग उनके लिए ख़ूबसूरती का अलग ही पैमाना था, उनमें बुर्जुआ या मध्य वर्ग के तौर-तरीकों व ज़िन्दगी के प्रति कोई आकर्षण नहींं महसूस होता।

विष्णु खरे : अपनी राह खुद बनाने वाला विद्रोही प्रयोगधर्मी कवि

9 फरवरी 1940 को छिंदवाड़ा (म.प्र.) में जन्मे विष्णु खरे ने मस्तिष्काघात के बाद विगत 19 सितम्बर, 2018 को दिल्ली में निधन से पहले एक लम्बा सर्जनात्मक और प्रयोग-संकुल जीवन बिताया, फिर भी वो लगातार इतना कुछ नया कर रहे थे कि सहज ही ये सोचने को जी चाहता है कि अभी उन्हें जाना नहीं था, अभी तो उन्हें काफी कुछ करना था। उनका सर्जनात्मक जीवन आधे सदी से भी अधिक लम्बा रहा। कविताएँ वे 1956 से, यानी 16 वर्ष की आयु से लिखने लगे थे। 1960 में टी.एस.एलियट की कविताओं का उनका अनुवाद ‘मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ’ नाम से प्रकाशित हुआ।

सावित्रीबाई फुले की लड़ाई आगे बढ़ाओ, नई शिक्षाबन्दी के विरोध में नि:शुल्क शिक्षा के हक़ के लिए एकजुट हो जाओ!

शिक्षा के क्षेत्र में इतना क्रान्तिकारी काम करने वाली सावित्रीबाई का जन्मदिवस ही असली शिक्षक दिवस है पर ये विडंबना है कि आज एक ऐसे व्यक्ति का जन्मदिवस शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है जिस पर थीसिस चोरी का आरोप है और जो वर्ण व्यवस्था का समर्थक था।

‘काकोरी एक्शन’ के शहीद अमर रहें

भारत के आज़ादी आन्दोलन में ‘काकोरी एक्शन’ एक महत्वपूर्ण घटना है। 9 अगस्त 1925 के दिन 10 नौजवानों ने काकोरी नामक जगह पर चलती रेल रोककर अंग्रेजी खजाने को लूट लिया था। अंग्रेजी खजाने की इस लूट का मकसद था क्रान्तिकारी गतिविधियों हेतु धन जुटाना और असल में वह धन यहाँ की जनता से ही तो निचोड़ा गया था! भारत में लूट, शोषण और दमन पर टिके अंग्रेजी साम्राज्य के मुँह पर ‘काकोरी एक्शन’ एक करारा तमाचा था। दमन चक्र के बाद मुकदमें की नौटंकी करके कईयों को कठोर कारावास और चार को फाँसी की सजा सुनाई गयी जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद को कभी गिरफ्तार ही नहीं किया जा सका। एच.आर.ए. वही संगठन था जिसकी विरासत को लेकर भगतसिंह और उनके साथी आगे बढ़े और 1928 में उन्होंने एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) के रूप में दल को विकसित किया। चन्द्रशेखर आज़ाद इसके ‘कमाण्डर इन चीफ़’ बने।

शहीद उधम सिंह अमर रहें!

26 दिसम्बर को अमर शहीद उधम सिंह का 118 वाँ जन्मदिवस था। भारत के आज़ादी आन्दोलन के उधम सिंह अमर सेनानी रहे हैं। अमृतसर के जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड को भला कौन भूल सकता है! यहाँ पर 13 अप्रैल सन् 1919 को वैशाखी वाले दिन निहत्थी जनता पर अंग्रेजों ने गोलियाँ चलवा दी थी। इस गोलीकाण्ड में हज़ारों लोग घायल और शहीद हुए थे। गोली चलाने का हुक्म ‘जनरल एडवर्ड हैरी डायर’ नामक अंग्रेज अफ़सर ने दिया था किन्तु इसके पीछे पंजाब के तत्कालीन गवर्नर जनरल रहे ‘माइकल ओ’ ड्वायर’ का हाथ था।

फिदेल कास्त्रो: जनमुक्ति के संघर्षों को समर्पित एक युयुत्सु जीवन

क्यूबा और फिदेल अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिये हमेशा चुनौती बने रहे। अमेरिका ने क्यूबा पर कई आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये और फिदेल की हत्या की भी कोशिश की गयी लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने हमेशा अमेरिकी साम्राज्यवाद की इच्छा के विरुद्ध काम किया। क्यूबा ने दक्षिण अफ्रीकी देशों अंगोला और नामिबिया में रंगभेद की नीति अपनाने वाली ताकतों के ख़िलाफ़ अपनी सैन्य शक्ति की मदद भेजी। यही वे तमाम कारण हैं कि आज जब फिदेल हमारे बीच नहीं हैं तो साम्राज्यवाद का भोंपू मीडिया उन्हें क्रूर तानाशाह और ‘दोन किहोते’ की संज्ञा दे रहा है। लेकिन जबतक दुनिया भर में मानवमुक्ति के सपने देखे जाते रहेंगे और लोग लड़ते रहेंगे; अपनी कई सैद्धान्तिक और मानवीय कमजोरियों के बावजूद फिदेल कास्त्रो जीवन्तता, बहादुरी, निर्भीकता और जनमुक्ति के संघर्षों के समर्पण के लिये याद किये जाते रहेंगे!

शहीद सुखदेव के जन्मदिवस के अवसर पर

शहीद सुखदेव और उनके साथियों के सपनों का समतामूलक समाज बनना अभी बाकी है। इसके लिए मेहनतकश जनता व खासकर नौजवानों को आगे आना होगा। उनके जन्मदिवस पर यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रीति‍लता वादेदार :चटगाँव विद्रोह की अमर सेनानी

देश के लि‍ए मर मि‍टने का जज़्बा ही वो ताकत है जो वि‍भि‍न्न पृष्ठभूमि‍ के क्रान्ति‍कारि‍यों को एक दूसरे के प्रति, साथ ही जनता के प्रति अगाध वि‍श्वास और प्रेम से भरता है। आज की युवा पीढ़ी को भी अपने पूर्वजों और उनके क्रान्तिकारी जज़्बे के विषय में कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए।

अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को याद करते हुए

बिस्मिल-अशफ़ाक की दोस्ती आज भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और साझे संघर्ष का प्रतीक है। ज्ञात हो एच.आर.ए. की धारा ही आगे चलकर एच.एस.आर.ए. में विकसित हुई जिससे भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, दुर्गावती और राजगुरू आदि जैसे क्रान्तिकारी जुड़े व चन्द्रशेखर ‘आज़ाद’ इसके कमाण्डर-इन-चीफ़ थे। हमारे इन शहीदों ने एक समता मूलक समाज का सपना देखा था। भरी जवानी में फाँसी का फ़न्दा चूमने वाले इन शहीदों को देश की खातिर कुर्बान हुए लम्बा समय बीत चुका है। अग्रेजी राज भी अब नहीं है लेकिन बेरोजगारी, भुखमरी, ग़रीबी और अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई से हम आज भी आज़िज हैं।

ग्वाटेमाला की जनता के संघर्षों के सहयोद्धा ओतो रेने कास्तिय्यो की कविताएं Poems by Otto Rene Castillo

एक योद्धा कवि अपनी मिट्टी, अपने लोगों के लिए अन्तिम साँस तक लड़ता रहा। एक बेहतर, आरामदेह ज़िन्दगी जीने के तमाम अवसर मौजूद होने के बावजूद उसने जनता का साथ चुना और आख़िरी दम तक उनके साथ ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए लड़ता हुआ शहीद हो गया।