Category Archives: शिक्षा स्‍वास्‍थ्य और रोजगार

पाठ्यक्रम में बदलाव : फ़ासीवादी सरकार द्वारा नयी पीढ़ी को कूपमण्डूक और प्रतिक्रियावादी बनाने की साज़िश

एक फ़ासीवादी सत्ता ऐसे ही काम करती है। वह पहले पूरे इतिहास का मिथ्याकरण करती है, फ़िर अपनी पूरी शक्ति से उसे स्थापित करने की कोशिश में लग जाती है। एक झूठे इतिहास का महिमामण्डन कर के लोगों को किसी “रामराज्य” के ख़्वाब दिखाती है, जिसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है।

“अमृतकाल” में उच्च शिक्षा

हमें यह समझना चाहिए कि सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा हासिल करने के लिए जुझारू संघर्ष संगठित करने के लिए विश्वविद्यालय कैम्पसों के अन्दर मौजूद छात्रों के साथ ही, कैम्पस के बाहर मौजूद छात्रों-युवाओं की बड़ी संख्या को भी लामबन्द करना होगा। अर्थात कैम्पस की चौहद्दियों के बाहर के दायरों को भी समेटता हुआ एक व्यापक छात्र-युवा आन्दोलन ही इस सबकी शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित कर सकता है।

आपस में नहीं, सबको रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

अब इन आँकड़ों की रोशनी में सोचिए! जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेज़ी से सिमटती जा रही हैं। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होगी। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाय।

अग्निपथ: ठेके पर “राष्ट्र सेवा” की योजना

सत्ता में पहुँचने के लिए भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में सेना, देशप्रेम, राष्ट्रवाद, राष्ट्रसेवा का ख़ूब भावनात्मक इस्तेमाल किया था। इस प्रक्रिया में फासिस्टों ने सेना का निरपेक्ष आदर्शीकरण कर इसे सवालों से परे किसी दैवीय शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन आज यही सेना के जवान फासिस्टों के ख़ूनी पंजों का शिकार हो रहे हैं।

नयी शिक्षा नीति पर अमल का असर: विश्वविद्यालयों में बढ़ती फ़ीस

जिस ‘नयी शिक्षा नीति’ का गुणगान करने में मोदी-योगी समेत पूरी फ़ासिस्ट मण्डली लगी हुई है, वह कुछ और नहीं बल्कि लफ़्फ़ाज़ियों की आड़ में शिक्षा को देशी-विदेशी पूँजीपतियों को सौंपने की नीति है। जैसे-जैसे नयी शिक्षा नीति पर अमल हो रहा है, वैसे-वैसे उसकी सच्चाई भी आम जनता के सामने खुलती जा रही है। मोदी की इस नयी शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा के प्रशासनिक केन्द्रीकरण और वित्तीय स्वायत्तता पर ज़ोर दिया गया है जिसका असर अब जगह-जगह दिखने लगा है।

एलओसीएफ़-2021 : उच्च शिक्षा के भगवाकरण और इतिहास के मिथ्याकरण का नया हथियार

सत्ता में आते ही सरकार ने तमाम शैक्षणिक और अकादमिक संस्थानों के उच्च पदों पर संघ के लोगों को भरना शुरू कर दिया था। 2014 में ही आरएसएस ने ‘भारतीय शिक्षा नीति आयोग’ बनाया जिसका मक़सद ही शिक्षा का भगवाकरण करना था। इसके बाद संस्थागत तरीके से स्कूली पाठ्यक्रमों की किताबों में साम्प्रदायिक सामग्री परोसकर और इतिहास के विकृतीकरण के ज़रिये हिन्दुत्ववादी फ़ासिस्टों द्वारा हमारे बच्चों में साम्प्रदायिक ज़हर भरने की कोशिश जारी है। ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 से 18 के बीच नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एण्ड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की स्कूली टेक्स्ट की 182 किताबों में से 1334 बदलाव किये जा चुके थे।

आईआईटी गुवाहाटी प्रशासन की तानाशाही

हर दौर में फ़ासीवाद कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों को अपना निशाना बनाता है, क्योंकि विश्वविद्यालय छात्रों के लिए जनवादी स्पेस होते हैं, जहाँ वे खुलकर अपनी सहमति व असहमति दर्ज़ करा सकते हैं, जहाँ वे बहस कर सकते हैं, सरकार से लेकर संस्थानों की कार्यप्रणालियों पर सवाल कर सकते हैं। इस जनवादी स्पेस को ख़त्म कर फ़ासीवादी ताक़तें प्रतिरोध के स्वर को दबाने का हर मुमकिन प्रयास करती हैं। ताकि इंसाफ़पसन्द छात्र और नौजवान या तो डरकर चुप हो जायें या फिर उनके पक्ष में हो जायें। आज देशभर में इस जनवादी स्पेस को ख़त्म कर ये लोग इसी काम को अंजाम देने की कोशिश कर रहे हैं।

छात्रों-युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति का ज़िम्मेदार कौन है?

पूरे देश में छात्रों-युवाओं में बढ़ती आत्महत्याएँ विकराल रूप लेती जा रही है। छात्रों का हब कहे जाने वाले शहर अब आत्महत्याओं के हब बन गये है। भविष्य की अनिश्चितता से हताश, निराश छात्र आज ज़िन्दगी के बजाय मौत को चुनने के लिये मजबूर हैं। ये वे हत्याएँ हैं जिनका न कोई सुराग़ है, न ही सुनवाई।

समाजवादी शिक्षा व्यवस्था: शिक्षा के क्षेत्र में समाजवादी चीन में हुए प्रयोगों पर एक संक्षिप्त चर्चा

समाजवादी निर्माण प्रक्रिया के तमाम प्रयोगों में से सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग रहें शिक्षा व्यवस्था सम्बन्धी प्रयोग। इन प्रयोगों ने एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था को जन्म दिया जो समाजवादी सत्ता तथा मेहनतकश वर्ग के हितों की सेवा करने के साथ-साथ नयी समाजवादी चेतना को गढ़ने में अग्रणी भूमिका अदा कर रही थी। महज़ कुछ सालों की समयावधि में निरक्षरता को जड़ से मिटाते हुए समाजवादी शिक्षा व्यवस्था एक वर्ग-विहीन शोषणमुक्त समाज की ओर संक्रमण में अहम भूमिका निभा रही थी। सोवियत संघ और चीन की समाजवादी शिक्षा व्यवस्थाओं के गहन अध्ययन और उनकी उपलब्धियों तथा कमज़ोरियों का सही मूल्यांकन किये बिना आज की ठोस परिस्थितियों में एक मुक्तिकामी शिक्षा परियोजना के निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

जनता के पैसों से आपदा में अवसर का निर्माण करतीं वैक्सीन कम्पनियाँ

मुनाफे पर टिकी इस पूँजीवादी व्यवस्था में लोगों की जान का भी सौदा किया जाता है। तमाम शोधों के पेटेण्ट, बड़ी फ़ार्मा कम्पनियों के हित में बने क़ानून और आज पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने वाली इन सरकारों की वजह से आज वैक्सीन की शोध के बावजूद आम आबादी का बड़ा हिस्सा वैक्सीन की कमी की वजह से कोरोना संक्रमण के ख़तरे का सामना कर रहा है।