Category Archives: साहित्‍य और कला

कविता : जब फ़ासिस्ट मज़बूत हो रहे थे / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : When the Fascists kept getting stronger / Bertolt Brecht

फैक्टरियों और खैरातों की लाइन में
हमने देखा है मजदूरों को
जो लड़ने के लिए तैयार हैं
बर्लिन के पूर्वी जिले में
सोशल डेमोक्रेट जो अपने को लाल मोरचा कहते हैं
जो फासिस्ट विरोधी आंदोलन का बैज लगाते हैं
लड़ने के लिए तैयार रहते हैं
और चायखाने की रातें बदले में गुंजार रहती हैं

स्त्री को एक वस्तु बनाकर पेश कर रहा सिनेमा

सिनेमा में औरतों को उस रूप में पेश किया जाता है जिस रूप में पूँजीवादी व्यवस्था उन्हें देखती है। मौजूदा व्यवस्था के लिये औरत एक भोगने की वस्तु है और उसका जिस्म नुमाइश लगाने की चीज़ है जिसको बाज़ार में कई तरह का माल बेचने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। ऐसी औरत की तो मनुष्य के तौर पर कोई पहचान ही नहीं है बल्कि जिन मर्दों के मन में स्त्री का ऐसा अक्स बनता है वे भी मनुष्य होने की संवेदना गँवा चुके और पशु बन चुके हैं। मौजूदा समाज में स्त्री को मनुष्य का दर्ज़ा दिलवाने के लिये उन सामाजिक सम्बन्धों को तोड़ना ज़रूरी है जिनके केन्द्र में मुनाफा और इसके साथ जुड़ी हर तरह की वहशी हवस है। इस सामाजिक व्यवस्था को बदलने के साथ-साथ सिनेमा और कला और साहित्य के अन्य माध्यमों में भी स्त्रियों की इस तरह की पेशकारी के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाया जाना चाहिए और इन क्षेत्रों में मज़दूर वर्ग के नज़रिये वाले साहित्य, कला और सिनेमा को ये लोगों में ले जाया जाना चाहिए जिन में स्त्रियाँ और मर्द आज़ादी, समानता के साथ भी सब मानवीय भावनाओं के साथ लबरेज़ मनुष्यों के रूप में सामने आते हैं। यानी सामाजिक सम्बन्धों के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ अपनी पूरी आत्मिक दौलत के साथ मनुष्य होना क्या होता है, यह भी लोगों को सिखाया जाना चाहिए।

शीषर्कविहीन कविता l बेबी

जहाँ रोज एक मलकानगिरी है
एक बस्तर है, एक गुजरात है
एक मुज़फ्फ़रनगर है
इन सब के बीच भी-
जब
रोज देखे जाते हैं सपने
बच्चे बड़े हो रहे हैं रोज
लोगों को बताना होगा रोज
कि
‘हँसने’ और ‘रोने’ के मायने
इस बात से भी तय होते हैं
कि कौन ‘रो’ और ‘हँस’ रहा है…

कविता : राजा ने आदेश दिया / देवी प्रसाद मिश्र

राजा ने आदेश दिया : हँसना बन्द
क्योंकि लोग हँसते हैं तो राजा के विरुद्ध हँसते हैं
राजा ने आदेश दिया : होना बन्द
क्योंकि लोग होते हैं तो राजा के विरुद्ध होते हैं
इस तरह राजा के आदेशों ने लोगों को
उनकी छोटी-छोटी क्रियाओं का महत्त्व बताया

अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को याद करते हुए

बिस्मिल-अशफ़ाक की दोस्ती आज भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और साझे संघर्ष का प्रतीक है। ज्ञात हो एच.आर.ए. की धारा ही आगे चलकर एच.एस.आर.ए. में विकसित हुई जिससे भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, दुर्गावती और राजगुरू आदि जैसे क्रान्तिकारी जुड़े व चन्द्रशेखर ‘आज़ाद’ इसके कमाण्डर-इन-चीफ़ थे। हमारे इन शहीदों ने एक समता मूलक समाज का सपना देखा था। भरी जवानी में फाँसी का फ़न्दा चूमने वाले इन शहीदों को देश की खातिर कुर्बान हुए लम्बा समय बीत चुका है। अग्रेजी राज भी अब नहीं है लेकिन बेरोजगारी, भुखमरी, ग़रीबी और अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई से हम आज भी आज़िज हैं।

ग्वाटेमाला की जनता के संघर्षों के सहयोद्धा ओतो रेने कास्तिय्यो की कविताएं Poems by Otto Rene Castillo

एक योद्धा कवि अपनी मिट्टी, अपने लोगों के लिए अन्तिम साँस तक लड़ता रहा। एक बेहतर, आरामदेह ज़िन्दगी जीने के तमाम अवसर मौजूद होने के बावजूद उसने जनता का साथ चुना और आख़िरी दम तक उनके साथ ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए लड़ता हुआ शहीद हो गया।

कविता – हमारे समय के दो पहलू / सत्‍यव्रत

यह एक बेहतर समय है,
या शायद, इतिहास का एक दुर्लभ समय।
बेजोड़ है यह समय
जीवन-मरण का एक नया,
महाभीषण संघर्ष रचने की तैयारी के लिए,
अभूतपूर्व अनुकूल है
धारा के प्रतिकूल चलने के लिए।