रॉके डॉल्टन की कविताएँ
रॉके डॉल्टन की कविताएँ अनुवाद : प्रियम्वदा निम्न-पूँजीपति वर्ग (उसकी एक अभिव्यक्ति के बारे में) वे जो सबसे बेहतर स्थितियों में क्रान्ति करना चाहते हैं इतिहास के लिये, तर्क के…
रॉके डॉल्टन की कविताएँ अनुवाद : प्रियम्वदा निम्न-पूँजीपति वर्ग (उसकी एक अभिव्यक्ति के बारे में) वे जो सबसे बेहतर स्थितियों में क्रान्ति करना चाहते हैं इतिहास के लिये, तर्क के…
और चमेली सोचती है, आज दिन ऐसा कौन है जो गूँगा नहीं है। किसका हृदय समाज, राष्ट्र, धर्म और व्यक्ति के प्रति विद्वेष से, घृणा से नहीं छटपटाता, किन्तु फिर भी कृत्रिम सुख की छलना अपने जालों में उसे नहीं फाँस देती-क्योंकि वह स्नेह चाहता है, समानता चाहता है!
महाजनी सभ्यता प्रेमचन्द मुज़द: ए दिल कि मसीहा नफ़से मी आयद; कि जे़ अनफ़ास खुशश बूए कसे मी आयद। (हृदय तू प्रसन्न हो कि पीयूषपाणि मसीहा सशरीर तेरी ओर आ…
प्रेमचन्द, उनका समय और हमारा समय : निरन्तरता और परिवर्तन के द्वन्द्व को लेकर कुछ बातें कविता कृष्णपल्लवी प्रेमचन्द की 300 से अधिक कहानियों में से कम से कम 20…
वीरेन डंगवाल के जन्मदिवस और स्मृति दिवस के अवसर पर मंगलेश डबराल हिन्दी की वाम कविता धारा के एक अग्रणी और अनूठे कवि वीरेन डंगवाल के 74वें जन्मदिन (5 अगस्त…
म्यूरल आन्दोलन: मैक्सिकन क्रान्ति की आँच में निर्मित हुआ कला आन्दोलन सनी मैक्सिको में जन्मे ‘जन तक कला’ ले जाने का आह्वान करने वाले म्यूरल आन्दोलन के इतिहास को लगभग…
प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट लीग ने ‘महामारी के दौर में कला’ विषय पर ऑनलाइन प्रदर्शनी आयोजित की। इस प्रदर्शनी में अलग-अलग जगहों से कलाकारों ने हिस्सेदारी की व उक्त विषय पर बनाई गई पेंटिंग, स्केच, वीडियो, कविताएँ एवं कोलाज साझा किए। यह प्रदर्शनी कोरोना काल में पैदा हुई मानवीय संकट के कारणों को कला के जरिये आमजन तक ले जाने का एक प्रयास थी।
पेशे से मनोविज्ञानी और बाल अधिकारों के विशेषज्ञ फ्रांसीसी लेखक पावलोफ़ ने यह कहानी 1988 में फ्रांस की राजनीति में धुर दक्षिणपंथी ताक़तों के बढ़ते असर के दौर में लिखी थी। एक सर्वसत्तावादी समाज किस तरह से सोच-विचार के तरीकों से लेकर रहन-सहन और जीवनशैलियों की स्वाभाविकता में ख़लल और आख़िरकार डकैती डालकर उन्हें गिरवी बना लेता है, यह कहानी (मूल नाम ‘मातिन ब्रून’) इसका दस्तावेज़ है। स्वेच्छाचारी, निरकुंश और फ़ासिस्ट चरित्र वाला राज्य किस तरह हर सोच, हर पसन्द, जीने की हर शैली को एक ही रंग में ढाल देना चाहता है, यह छोटी-सी कहानी इसे बेहद मारक ढंग से हमारे सामने रखती है। शीर्षक नाज़ी पार्टी की पोशाक ‘ब्राउन शर्ट्स’ की याद दिलाता है।
देवियो और सज्जनो
अब हम जहाँ जा रहे हैं
वह हमारे समय का अभूतपूर्व मन्दिर है
कॉलवित्ज़, जो एक महान जर्मनप्रिंटमेकर व मूर्तिकार थीं, अपने समय के कलाकारों से अलग एक स्वतन्त्र और रैडिकल कलाकार के रूप में उभर कर आती है। उन्होंने शुरू से ही कलाकार होने के नाते समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझा और अपनी पक्षधरता तय की। उनके चित्रों में हम शुरुआत से ही गरीब व शोषित लोगों को पाते हैं, एक ऐसे समाज का चेहरा देखते हैं जहाँ भूख है, गरीबी है, बदहाली है और संघर्ष है! उनकी कला ने जनता के अनन्त दुखों को आवाज़ देने का काम किया है। उनकी कलाकृतियों में ज़्यादातर मज़दूर तबके से आने वाले लोगों का चित्रण मिलता है। वह “सौंदर्यपसंद” कलाकारों से बिलकुल भिन्न थीं। प्रचलित सौंदर्यशास्त्र से अलग उनके लिए ख़ूबसूरती का अलग ही पैमाना था, उनमें बुर्जुआ या मध्य वर्ग के तौर-तरीकों व ज़िन्दगी के प्रति कोई आकर्षण नहींं महसूस होता।