दुनिया को स्पष्ट शब्दों में स्पष्ट विकल्प की ज़रूरत है, जो कि दिया जा सकता है और सम्भव है, बशर्ते कि दुनिया भर में क्रान्तिकारी शक्तियाँ अन्दर और बाहर, दोनों ओर से सामने आ रही चुनौतियों का सही तरीके से मुकाबला करें। आज पूरी दुनिया में जो पूँजीवाद-विरोधी जनान्दोलन चल रहे हैं, वे अराजकतावाद, स्वतःस्फूर्ततावाद और तरह-तरह की विजातीय प्रवृत्तियों का शिकार हैं। इन आन्दोलनों में जनता स्वतःस्फूर्त तरीके से पूँजीवाद-विरोधी घृणा और नफ़रत से उतरी है। लेकिन पूँजीवाद के खि़लाफ़ यह घृणा रखना काफ़ी नहीं है; स्वतःस्फूर्तता काफ़ी नहीं है; एक पंक्ति में कहें तो महज़ पूँजीवाद-विरोध पर्याप्त नहीं है। इन आन्दोलनों में अराजकतावाद और चॉम्स्कीपंथ का जो पुनरुत्थान होता दिख रहा है, वह लघुजीवी सिद्ध होगा; बल्कि कहना चाहिए कि इन स्वतःस्फूर्त आन्दोलनों में बिखराव के साथ यह लघुजीवी सिद्ध होने भी लगा है। अराजकतावाद कोई विकल्प पेश नहीं कर सकता। हमें एक सुस्पष्ट, सुसंगत क्रान्तिकारी विकल्प पेश करना होगा। और उसके लिए दुनिया भर के सर्वहारा क्रान्तिकारियों को अपने भीतर मौजूद कमज़ोरियों, कठमुल्लावाद, धुरी-विहीन चिन्तन और आत्मसमर्पणवाद को त्यागना होगा और मार्क्सवाद के उसूलों पर खड़े होकर, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के विज्ञान पर खड़े होकर इन चुनौतियों का सामना करना होगा। बिना क्रान्तिकारी विचारधारा, क्रान्तिकारी पार्टी और क्रान्तिकारी आन्दोलन के बिना कोई क्रान्ति नहीं हो सकती। आज अपनी विचारधारात्मक कमज़ोरियों और कार्यक्रम-सम्बन्धी कठमुल्लावादी समझदारी से निजात पाकर विश्व भर में सर्वहारा क्रान्तिकारियों को एक नयी क्रान्तिकारी पार्टी को खड़ा करने की तैयारी करनी होगी। आन्दोलन की संकट को दूर करने का यही रास्ता है।