Category Archives: सम्‍पादकीय

भाजपा की साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीति की आग में जलता मणिपुर

उपरोक्त कारकों के अलावा मणिपुर की हालिया हिंसा में एक नया और बड़ा कारण मणिपुर में संघ परिवार व भाजपा की मौजूदगी और उसका फ़ासीवादी प्रयोग रहा है। ग़ौरतलब है कि मणिपुर में 2017 से ही भाजपा की सरकार है जिसका इस समय दूसरा कार्यकाल चल रहा है। पिछले छह वर्षों में संघ परिवार ने सचेतन रूप से मणिपुर में मैतेयी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और उसे हिन्दुत्ववादी भारतीय राष्ट्रवाद से जोड़ने के तमाम प्रयास किये हैं।

जनवादी अधिकारों पर बढ़ता फ़ासीवादी हमला और कैम्पसों में घटता जनवादी स्पेस

जनवादी अधिकारों पर बढ़ता फ़ासीवादी हमला और कैम्पसों में घटता जनवादी स्पेस सम्पादकीय वर्तमान फ़ासीवादी दौर में जनता के लम्बे संघर्षों से हासिल सीमित जनवादी अधिकारों पर हमला बोल दिया…

फ़ासीवादी साम्प्रदायिक उन्माद और आत्महत्या करते बेरोज़गार छात्र-युवा

लेकिन इस साम्प्रदायिक उन्माद के शोर में जनता के ऊपर हो रही बहुत सारी तकलीफ़ों की बारिश की तरह बेरोज़गारी की भयानक मार सहते हुए निराश, अवसादग्रस्त छात्रों-युवाओं की रिकॉर्डतोड़ आत्महत्याएँ और उनके परिवार की चीख़ें दब गयीं। मौजूदा व्यवस्था और उसके रहनुमाओं की नीतियों से निकलने वाला बेरोज़गारी का बुलडोज़र आम घरों के बेटे-बेटियों के भविष्य और सपनों को रौंदता हुआ दौड़ रहा है, चाहे वो जिस मज़हब और जाति के हों! अभी हाल ही में मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना के ज़रिये बहुत से छात्रों-युवाओं की उम्मीदों पर बुलडोज़र चढ़ा दिया है और आगे अन्य विभागों में भी छात्रों-युवाओं की उम्मीदों पर बुलडोज़र चढ़ना तय है।

यूएपीए : जनप्रतिरोध को कुचलने का औज़ार

एनसीआरबी के रिकॉर्ड्स के मुताबिक़ पिछले 5 सालों में 7840 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसमें मात्र 155 लोगों पर ही आरोप साबित किया जा सका। अपवादों को छोड़कर, न्यायपालिका सीधे-सीधे सरकार के इशारों पर काम कर रही है और एनआईए, सीबीआई, आईबी, ईडी आदि एजेंसियों की स्वतन्त्रता और निष्पक्षता की बात करना तो एक मज़ाक से अधिक कुछ भी नहीं है!

कोरोना महामारी और ध्वस्त चिकित्सा व्यवस्था के बीच जलती और दफ़्न होती इंसानी लाशें

वायरल संक्रमण प्रकृति और मनुष्य की अन्तर्क्रिया के दौरान अनिवार्य रूप से पैदा होते ही हैं। वे मनुष्यों के बीच बीमारी के रूप में भी फैलते हैं। लेकिन वे महामारियों का रूप अक्ससर पूँजीवादी मुनाफ़ाखोर व्यवस्थाा के कारण लेते हैं। निश्चित तौर पर, यदि देश में एक सुचारू स्वास्थ्य व्यवस्था होती तो मौतों की संख्या को घटाया जा सकता था। लेकिन हमारे देश में स्वास्थ्य व्यवस्था को मुनाफ़ाखोरी की भेट चढ़ा दिया गया है। इसका नतीजा देश की जनता को कोरोना महामारी के दौरान भुगतना पड़ा।

धनी किसान आन्दोलन का वर्ग चरित्र अब खुलकर सामने आ रहा है

‘आह्वान’ के पाठक जानते हैं कि पिछले चार महीनों से जारी किसान आन्दोलन के बारे में हमारा दृष्टिकोण उन तमाम लोगों से एकदम अलग रहा है जो इसे देश के आम किसानों-मज़दूरों-मेहनतकशों का आन्दोलन मानते हैं और इससे संघी फ़ासीवाद पर चोट करने की उम्मीदें लगाये बैठे हैं। हमने पत्रिका के पिछले अंक में और हमारे ऑनलाइन पेजों पर लगातार इस विषय में विस्तार से लिखा है। हम शुरू से कहते रहे हैं कि मौजूदा किसान आन्दोलन धनी किसानों-कुलकों-फ़ार्मरों का आन्दोलन है, इसका नेतृत्व इन्हीं वर्गों के हाथों में और इसकी माँगें उन्हीं के वर्गीय हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

हिन्दू राष्ट्र में क्या होगा?

जैसे-जैसे देश में असन्तोष और ग़ुस्सा बढ़ेगा, लोगों का ध्यान भटकाने के लिए और उनकों बाँटने के लिए हिन्दुत्व के जुमले को और भी ज़्यादा उछाला जायेगा, हिन्दुओं और मुसलमानों को एक-दूसरे के शत्रु के रूप में पेश किया जायेगा, ताकि इन भयंकर स्थितियों के लिए जिम्मेदार पूँजीवादी व्यवस्था, पूँजीपति वर्ग और उसके सबसे प्रतिक्रियावादी हिस्से की नुमाइन्दगी करने वाली मोदी-शाह सरकार को जनता कठघरे में न खड़े। और यदि कोई इस सच्चाई को समझता है और मोदी सरकार का विरोध करता है, तो उसे ‘हिन्दू राष्ट्र’ का शत्रु करार दिया जायेगा, जेलों में डाला जायेगा, प्रताड़ित किया जायेगा, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। क्या देश में ठीक यही नहीं हो रहा है? सोचिए।

एनपीआर के ख़िलाफ़ देशव्यापी जनबहिष्कार है अगला क़दम!

यह समझना बहुत ज़रूरी है कि एक अच्छी-ख़ासी आम हिन्दू आबादी भी संघ परिवार के प्रचार के प्रभाव में है। उसे सीएए-एनआरसी-एनपीआर की सच्चाई नहीं पता है। वह भी बेरोज़गारी, महँगाई और पहुँच से दूर होती शिक्षा, चिकित्सा और आवास से परेशान है, नाराज़ है, असन्तुष्ट है। और यही नाराज़गी उसमें एक ग़ुस्से और प्रतिक्रिया को जन्म दे रही है। सही राजनीतिक शिक्षा और चेतना के साथ यह नाराज़गी सही शत्रु को पहचान सकती है और उसे निशाना बना सकती है, यानी कि मौजूदा फ़ासीवादी सत्ता और समूची पूँजीवादी व्यवस्था को। लेकिन राजनीतिक चेतना और शिक्षा की कमी के कारण फ़ासीवादी शक्तियाँ उनकी अन्धी प्रतिक्रिया को एक नकली दुश्मन, यानी मुसलमान और दलित, देने में कामयाब हो जाती हैं।

सीबीआई का घमासान और संघ का लोकसभा चुनाव हेतु ‘राम मन्दिर’ शंखनाद

पाँच राज्य में विधानसभा के नतीजे सामने आ चुके हैं और कांग्रेस ने पाँच राज्य में से तीन पर हाँफते-हाँफते सरकार बना ली है। यह चुनावी नतीजे मोदी की उतरती लहर को पुख्ता करते हैं और जनता के अंदर सरकार के खिलाफ़ गुस्से की ही अभिव्यक्ति है। चुनावी नतीजों के विश्लेषण में जाने पर यह साफ हो जाता है कि शहरी से लेकर ग्रामीण आबादी में भाजपा के वोट प्रतिशत में नुकसान हुआ है। वसुंधरा राजे और ‘मामा’ शिवराज सिंह की निकम्मी सरकारों के खिलाफ जनता में गुस्सा था परंतु ईवीएम के जादू और संघ के भीषण राम मंदिर प्रचार ने भाजपा को इन दोनों राज्य में टक्कर पर पहुंचा दिया। यह चुनाव जिस पृष्ठभूमि पर लड़ा गया और आगामी लोकसभा चुनाव तक संघ जिस ओर कदम बढ़ा रहा है हम यहाँ विस्तार से बात करेंगे।

फासीवाद को हराने के लिए पूँजीवाद के खात्मे की लड़ाई लड़नी होगी!

आज का फासीवाद मुसोलीनी के इटली सरीखे और हिटलर के जर्मनी सरीखे फासीवादी मॉडल से भिन्नता लिए हुए है। 1920 के दशक की आर्थिक महामन्दी के दौर में उभरे फासीवादी आन्दोलन में आकस्मिकता का तत्व था तो 1970 से मन्द-मन्द मन्दी की शिकार व्यवस्था, जो 2008 के बाद से मन्दी के अधिक भयंकर भँवर में जा फँसी है, में धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर सत्ता में पहुँचने का तत्व है। भारत में फासीवादी अचानक ब्लिट्जक्रिग अंदाज़ में सत्ता में जाने की जगह धीरे-धीरे पोर-पोर में समाकर और समय-समय पर आन्दोलनों के जरिये सत्ता के करीब पहुँचे हैं।