अन्धी वतन परस्ती हमको किस रस्ते ले जायेगी

गौहर रज़ा (04-03-2016)

धर्म में लिपटी वतन परस्ती क्या-क्या स्वांग रचायेगी
मसली कलियाँ, झुलसा गुलशन, ज़र्द खि़ज़ाँ दिखलायेगी
यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है
खतरा है यह वहशत मेरे मुल्क में आग लगायेगी
जर्मन गैसकदों से अबतक खून की बदबू आती है
अन्धी वतन परस्ती हम को उस रस्ते ले जायेगी
अन्धे कुएँ में झूठ की नाव तेज़ चली थी मान लिया
लेकिन बाहर रौशन दुनिया तुम से सच बुलवायेगी
नफ़रत में जो पले बढ़े हैं, नफ़रत में जो खेले हैं
नफ़रत देखो आगे-आगे उनसे क्या करवायेगी
फ़नकारों से पूछ रहे हो क्यों लौटाये हैं सम्मान
पूछो, कितने चुप बैठे हैं, शर्म उन्हें कब आयेगी

यह मत खाओ, वह मत पहनो, इश्क़ तो बिलकुल करना मत
देश द्रोह की छाप तुम्हारे ऊपर भी लग जायेगी,
यह मत भूलो अगली नस्लें रौशन शोला होती हैं
आग कुरेदोगे चिंगारी दामन तक तो आयेगी

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मार्च-अप्रैल 2016

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